डायबिटीज (मधुमेह) के बारे में सबकुछ – diabetes in hindi
इस लेख में आप जानेंगे डायबिटीज के बारे में सबकुछ – क्या होते है मधुमेह के लक्षण, कारण, रिस्क फैक्टर, जटिलताएं, इलाज, डाइट, निदान और बच्चों में मधुमेह –
डायबिटीज के प्रकार – Types of diabetes in hindi
डायबिटीज मेलिटस को डायबिटीज के रूप में जाना जाता है. यह मेटाबॉलिक रोग होता है जो हाई ब्लड शुगर के कारण होता है. मधुमेह वाले रोगियों का शरीर या तो खुद इंसुलिन नही बना पाता है या इंसुलिन का उपयोग प्रभावी रूप से नही कर पाता है.
अनियंत्रित हाई ब्लड शुगर का असर आंखों, नसों, किडनी समेत अन्य अंगों पर पड़ सकता है. डायबिटीज के कुछ प्रकार होते है जैसे –
- टाइप 1 डायबिटीज – यह ऑटोइम्यून रोग होता है जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम, इंसुलिन बनाने वाले पैंक्रियाज के सेल्स को नष्ट कर देता है.
- टाइप 2 डायबिटीज – जब हमारा शरीर इंसुलिन के प्रति संवेदनशील नही रहता है और ब्लड में शुगर बनने लगती है.
- प्रीडायबिटीज – जब व्यक्ति की ब्लड शुगर सामान्य से अधिक रहती है और उसे टाइप 2 डायबिटीज निदान नही माना जा सकता है.
- गेस्टेशनल डायबिटीज – प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली हाई ब्लड शुगर, जिसमें इंसुलिन को ब्लॉक करने वाले हार्मोन प्लासेंटा के कारण बनने लगते है.
- टाइप 3 डायबिटीज – आजकल के समय में कुछ शोध के अनुसार, ऑटोइम्यून रोग जो कई तरह से प्रभावित करता है. कई लोगों द्वारा उसे यह बोला जाता है.
- डायबिटीज इंसिपिडस – यह कंडीशन मेलिटस से अलग होती है और इसमें शरीर किडनी से बहुत ज्यादा फ्लूइड को हटा देता है.
डायबिटीज के लक्षण – symptoms of diabetes in hindi
ब्लड शुगर लेवल के बढ़ने से मधुमेह के लक्षण होते है –
आम लक्षण
- अधिक थकान होना
- धुंधली दृष्टि
- छाले जो ठीक नही होते
- वजन कम होना
- प्यास बढ़ना
- भूख बढ़ना
- बार बार पेशाब जाना
डायबिटीक पुरूषों में लक्षण
- सेक्स ड्राइव की कमी
- मांसपेशियाँ कमजोर होना
- इरेक्टाइल डिस्फंक्शन
डायबिटीक महिलाओं में लक्षण
- यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन
- यीस्ट इंफेक्शन
- सूखी स्किन
- त्वचा पर खुजली होना
टाइप 1 डायबिटीज
- बार बार पेशाब आना
- थकान रहना
- बिना किसी वजह वजन कम होना
- प्यास बढ़ना
- भूख बढ़ना
- मूड में बदलाव
टाइप 2 डायबिटीज
- छाले जो जल्दी से ठीक नही होते है
- भूख बढ़ना
- प्यास बढ़ना
- बार बार पेशाब आना
- दृष्टि की समस्या
- ग्लूकोज लेवल ऊपर नीचे होना
- इंफेक्शन बार बार आना
गेस्टेशनल डायबिटीज
- अधिकतर महिलाओं को इसके कोई लक्षण नही होते है.
- इस कंडीशन का पता नियमित ब्लड शुगर टेस्ट या ग्लूकोज टोलरेंस से पता चलता है जो प्रेगनेंसी के 24 और 28वें हफ्ते में होता है.
डायबिटीज के कारण – causes of diabetes in hindi
हर प्रकार की डायबिटीज का कारण अलग होता है.
टाइप 1 डायबिटीज
- डॉक्टरों को टाइप 1 डायबिटीज का असल कारण नही पता है.
- इसके दौरान इम्यून सिस्टम गलती से इंसुलिन बनाने वाले सेल्स को अटैक करते है.
- कुछ लोगों में इसका कारण जेनेटिक होता है.
टाइप 2 डायबिटीज
- यह जेनेटिक्स और लाइफ़स्टाइल फैक्टर के कारण होता है.
- मोटापा या अधिक वजन होने के कारण इसका रिस्क बढ़ जाता है.
- पेट के आसपास चर्बी होने पर सेल्स इंसुलिन असंवेदनशील हो जाती है.
- जेनेटिक्स के कारण भी यह हो सकता है.
गेस्टेशनल डायबिटीज
- गर्भवस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव के चलते यह हो जाती है.
- प्लासेंट नाम के हार्मोन के ज्यादा बनने से गर्भवती महिलाओं में इंसुलिन ठीक से प्रभाव नही करता है.
- गर्भावस्था से पहले मोटापा या इसके दौरान अधिक वजन बढ़ाने वाली महिलाओं को यह हो सकती है.
डायबिटीज रिस्क फैक्टर – diabetes risk factors in hindi
टाइप 1 डायबिटीज
- बच्चे या किशोरावस्था में इसके होने के मौके अधिक होते है.
- माता पिता या किसी भाई बहन के इस कंडीशन से पीड़ित होने पर जेनेटिक्स के कारण भी यह हो सकता है.
टाइप 2 डायबिटीज
- 45 से अधिक आयु होने पर
- जेनेटिक्स
- शारीरिक रूप से सक्रिया न होने
- अधिक वजन या मोटापा होने
- हाई ब्लड प्रेशर
- हाई कोलेस्ट्रोल
- हाई ट्राइग्लिसराइड्स
- प्रीडायबीटिक्स
गेस्टेशनल डायबिटीज
- 25 से अधिक आयु
- लास्ट गर्भावस्था के दौरान गेस्टेशनल मधुमेह होने
- पेट पर चर्बी होने
- टाइप 2 डायबिटीज का पारिवारिक इतिहास
- पीसीओएस
डायबिटीज से जुड़ी जटिलताएं – diabetes complications in hindi
हाई ब्लड शुगर के कारण शरीर के अंगों और टिश्यू को नुकसान पहुँचता है. इसके अलावा ब्लड शुगर लेवल के लंबे समय तक हाई रहने पर जटिताओं का रिस्क बढ़ सकता है जैसे –
- हार्ट रोग
- हार्ट अटैक
- स्ट्रोक
- सुनने की क्षमता का नुकसान
- न्यूरोपैथी
- दृष्टि का नुकसान
- रेटिनोपैथी
- छाले और इंफेक्शन का ठीक न होना
- डिप्रेशन
- नैफरोपैथी
- डिमेंशिया
- बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन
गेस्टेशनल डायबिटीज
- समयपूर्व शिशु का जन्म
- लो ब्लड शुगर
- बाद में टाइप 2 मधुमेह का रिस्क अधिक होना
- मृतजन्म
- पीलिया
- हाई ब्लड प्रेशर
- सी-सेक्शन की जरूरत पड़ सकती है
डायबिटीज का इलाज – treatment of diabetes in hindi
इसके इलाज के लिए डॉक्टर मौखिक दवाएं या इंजेक्शन का प्रयोग करते है.
टाइप 1 डायबिटीज
इसके लिए मुख्य इलाज इंसुलिन होता है क्योंकि रोगी का शरीर यह हार्मोन बना नही पाता है इसलिए इसको इंसुलिन पेन के जरिए दिया जाता है. जिसके चार प्रकार सबसे ज्यादा प्रयोग किए जाते है.
- रैपिड एक्टिंग इंसुलिन का असर 15 मिनट से शुरू होकर 3 से 4 घंटों तक रहता है.
- शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन का असर दिखने में 30 मनट से शुरू होकर 6 से 8 घंटों तक रहता है.
- इंटरमैडियेट एक्टिंग इंसुलिन का असर 1 से 2 घंटों के बीच शुरू होकर 12 से 18 घंटों तक रहता है.
- लांग लास्टिंग इंसुलिन का असर इंजेक्शन लगाने के कुछ घंटों के भीतर शुरू होकर 24 घंटे या उससे अधिक समय तक रहता है.
टाइप 2 डायबिटीज
- डाइट और एक्सरसाइज के साथ इस प्रकार की मधुमेह को मैनेज किया जा सकता है.
- अगर लाइफ़स्टाइल बदलाव के साथ ब्लड शुगर लेवल कम नही होने पर दवा की जरूरत पड़ सकती है.
गेस्टेशनल डायबिटीज
- गर्भावस्था के दौरान दिन में कई बार ब्लड शुगर लेवल को जांचने की जरूरत पड़ती है.
- हाई शुगर लेवल रहने पर इंसुलिन की जरूरत पड़ती है.
डायबिटीज में डाइट – diabetes diet in hindi
हेल्दी भोजन आदतें डायबिटीज मैनेज करने के लिए जरूरी है. कुछ मामलों में डाइट से बदलाव के साथ डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है.
टाइप 1 डायबिटीज
- भोजन खाने के प्रकार के आधार पर ब्लड शुगर लेवल ऊपर नीचे होते रहते है.
- स्टार्च या शुगर वाला भोजन खाने से लेवल तेजी से बढ़ते है.
- प्रोटीन और फैट के कारण शुगर लेवल बढ़ता है.
- इसके लिए थोड़ी मात्रा में डाइट में कार्ब्स लेने चाहिए.
- इंसुलिन डोज के साथ कार्ब्स के सेवन को संतुलित किया जा सकता है.
- इसके लिए अपने डायटिशियन से सलाह लें.
टाइप 2 डायबिटीज
- सही भोजन खाने से ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल और अधिक वजन कम किया जा सकता है.
- इसके लिए कार्ब्स को काउंट करना बहुत जरूरी है.
- ब्लड शुगर लेवल को सही रखने के लिए जरूरी है कि छोटे छोटे मील्स लें.
- साथ ही भोजन में फल, सब्जी, पूर्ण अनाज, हेल्दी फैट जैसे ऑलिव ऑयल और नट्स आदि लें.
गेस्टेशनल डायबिटीज
- आपके और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए 9 महीनों तक संतुलित डाइट बहुत जरूरी है.
- सही भोजन खाने से डायबिटीज दवाओं से बचा जा सकता है.
- डॉक्टर से बात कर डाइट के बारे में जानना चाहिए.
डायबिटीज का निदान – diabetes diagnosis in hindi
- मधुमेह के लक्षण होने पर टेस्ट किए जाने चाहिए. जबकि गर्भवती महिलाओं के दूसरी और तीसरी तिमाही में रूटीन टेस्ट किए जाने चाहिए.
- इसके लिए ब्लड टेस्ट किए जाते है जिसमें प्रीडायबीटिक्स और डायबिटीज वाले रोगियों का पता लग जाता है.
- इसके अलावा 8 घंटे भूखे रहकर फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोज (FPG) टेस्ट किया जाता है.
- जबकि A1C टेस्ट से पिछले तीन महीने के ब्लड शुगर लेवल का पता लग जाता है.
डायबिटीज से बचाव – diabetes prevention in hindi
- टाइप 1 डायबिटीज से बचाव नही होता है क्योंकि यह हमारे इम्यून सिस्टम में समस्या के कारण होती है.
- जबकि कुछ टाइप 2 डायबिटीज का कारण जेनेटिक्स या आयु होते है जो आपके कंट्रोल में नही होते है.
इसके अलावा निम्न बदलाव के साथ जैसे डाइट और फिटनेस रूटीन के साथ डायबिटीज से बचाव किया जा सकता है.
- हफ्ते में कम से कम 150 मिनट एक्सरसाइज जैसे साइकल चलाना या वाल्क करना.
- अपनी डाइट से सैचुरेटिड, ट्रांस फैट और रिफाइंड कार्ब्स को कम करें.
- छोटे छोटे भागों में भोजन करें.
- अधिक फल, सब्जी और पूर्ण अनाज लें.
- अधिक वजन होने पर वजन कम करने की कोशिश करें और बॉडी फैट कम करें.
- इससे डायबिटीज से बचाव करने में मदद मिलेगी.
बच्चों में डायबिटीज – diabetes in children in hindi
बच्चों को टाइप 1 और टाइप 2 दोनों डायबिटीज हो सकती है. ब्लड शुगर का लेवल कंट्रोन न रहने पर हार्ट और किडनी को नुकसान हो सकता है.
टाइप 1 डायबिटीज
- अधिकतर यह डायबिटीज का यह ऑटोइम्यून प्रकार बचपन से शुरू हो जाता है.
- इसके लक्षणों में पेशाब अधिक आना होता है.
- टाइप 1 डायबिटीज वाले बच्चे बिस्तर गीला करना शुरू कर देते है.
- ज्यादा प्यास लगना, थकान, भूख इसके लक्षण होते है.
टाइप 2 डायबिटीज
- इसका बच्चों में होना बहुत रेयर होता है.
- जबकि मोटापा, अधिक वजन वाले बच्चों में यह होना आम है.
- अधिकतर बच्चों में इसके कोई लक्षण नही होते है.
- इसका पता शारीरिक जांच के बाद ही लगता है.
- बिना उपचार के यह जीवनभर की जटिलता बन सकती है जिससे हार्ट रोग, किडनी रोग और अंधापन शामिल है.
- हेल्दी भोजन खाने और एक्सरसाइज से बच्चों में इसे मैनेज किया जा सकता है.
अंत में
कुछ प्रकार की डायबिटीज जैसे टाइप 1 के होने का ऐसे फैक्टर होते है जो आपकी पहुँच से बाहर होते है. वहीं टाइप 2 को बेहतर लाइफ़स्टाइल बदलाव, एक्सरसाइज करने और वजन कम करके बचाव किया जा सकता है.
अपने डॉक्टर से डायबिटीज के रिस्क आदि के बारे में चर्चा करनी चाहिए. रिस्क होने पर ब्लड शुगर का टेस्ट करवाने के साथ डॉक्टर द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए.
References –