इस लेख में आप जानेंगे गठिया के आयुर्वेदिक इलाज, नैचुरल हर्ब्स, विटामिन मिनरल और अन्य प्राकृतिक उपायों के बारे में –

गठिया का आयुर्वेदिक इलाज – ayurvedic treatment for arthritis

  • भारत में प्राचीन समय से उपयोग की जाने चिकित्सा पद्धति को आयुर्वेद कहा जाता है.
  • इसमें पोषण, एक्सरसाइज, मेडिटेशन को एक साथ इस्तेमाल कर अच्छी हेल्थ को लक्ष्य प्राप्त किया जाता है.
  • कुछ विशेष पोषक तत्व और मॉर्डन मेडिसन के साथ अन्य सप्लीमेंट को लेने से गठिया में लाभ मिलता है.
  • इस तरह के प्राकृतिक उपाय गठिया के लक्षणों को कम करके इसके बढ़ने को रोकता है.

नैचुरल उपाय और हर्ब्स

  • आप डॉक्टर से बात करके अपने गठिया के ट्रीटमेंट प्लान में सप्लीमेंट और हर्ब्स के सेवन को उपयोग कर सकते हैं.
  • साथ ही अगर आपको डायबिटीज, कोई सर्जरी निर्धारित है या स्तनपान, गर्भवती होने के मामलों में इस्तेमाल से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें.

करक्यूमिन

  • यह हल्दी में मौजूद सक्रिय सामग्री में से एक है.
  • यह इंफ्लामेशन का कारण बनने वाले तत्वों को ब्लॉक करके कार्टिलेज नुकसान को कम करने में मदद करती है.
  • हफ्ते में चार दिन और आठ महीनों तक इसकी 200 से 500 एमजी डोज़ का उपयोग किया जा सकता है.
  • इसकी क्रीम या जैल आदि को दिन में चार बार उपयोग किया जा सकता है.
  • निम्न स्थितियों में करक्यूमिन के सेवन से बचना चाहिए – पित्त की थैली की समस्या, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग, आयरन की कमी, बांझपन, हार्मोन संवेदनशीलता कंडीशन आदि. 

एस-एडेनोसिल-एल-मेथियोनीन

  • यह शरीर में नैचुरल रूप से मिलने वाला अणु है जो दर्द से राहत देने, एंटी इंफ्लामेटरी गुण और कार्टिलेज ग्रोथ में मदद करता है.
  • एक अध्ययन के अनुसार एस-एडेनोसिल-एल-मेथियोनीन की मदद से ओस्टियोअर्थेराइटिस वाले मरीज़ों में दर्द के स्तर को कम करने और गतिविधि बढ़ाने में मदद करता है.
  • इसे एनएसएड्स जितना प्रभावी माना जाता है.
  • इसके कुछ नाकारात्मक साइड इफेक्ट भी होते है.
  • एस-एडेनोसिल-एल-मेथियोनीन दवा को बाइपोलर डिसऑर्डर, पार्किंसन रोग आदि के पहले से होने पर नहीं लिया जाना चाहिए.
  • इस दवा का उपयोग डॉक्टर की सलाह के बाद ही किया जाना चाहिए.

फिश ऑयल

  • ओमेगा 3 फैटी एसिड वाले कॉड लिवर कैप्सूल को गठिया रोगियों को राहत देने में मदद के लिए जाना जाता है.
  • साथ ही यह जोड़ों में ऐंठन, कठोरता और दर्द को कम करने में प्रभावी माना जाता है.
  • रूमेटॉइड अर्थेराइटिस वाले रोगियों में फिश ऑयल को काफी प्रभावी माना जाता है.
  • फिश ऑयल में हाई ईपीए, डीएचए के लेवल होने के अलावा एंटी इंफ्लामेटरी प्रभाव होते है.
  • इसके अलावा बाइपोलर डिसऑर्डर, डिप्रेशन, लिवर रोग, हाई ब्लड प्रेशर, एचआईवी या एड्स, कमजोर इम्यून सिस्टम आदि के मामलों में फिश ऑयल का उपयोग न करें.
  • साथ ही ब्लड क्लॉटिंग को धीमा करने वाली, ब्लड प्रेशर, बर्थ कंट्रोल गोलियों के मामले में फिश ऑयल का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

कैप्साइसिन

  • यह मिर्च आदि में पाए जाने वाला तत्व है.
  • इसे गठिया संबंधी दर्द में राहत देने में प्रभावी माना जाता है.
  • एक अध्ययन में देखने को मिला है कि हफ्ते में चार बार टॉपिकल कैप्साइसिन के उपयोग से मध्यम ऑस्टियोअर्थेराइटिस के दर्द को कम किया जा सकता है.
  • इसे शरीर के अलग हिस्सों पर 20 हफ्तों तक उपयोग किया जा सकता है.
  • अगर आप इसे पहले बार उपयोग कर रहे है तो स्किन के छोटे हिस्से पर लगाकर टेस्ट कर लें कि कहीं कोई एलर्जिक रिएक्शन तो नहीं है.

विटामिन और मिनरल

  • अच्छी सेहत और गठिया के लक्षणों में राहत के लिए हेल्दी डाइट का सेवन करना बहुत जरूरी है.
  • इसके लिए आप अपनी डाइट में कुछ विटामिन और मिनरल को शामिल कर सही मात्रा प्राप्त कर सकते है.
  • अपनी पोषक तत्वों की जरूरत अनुसार डॉक्टर से सालह कर सही जानकारी लें क्योंकि किसी विटामिन या मिनरल की अधिक मात्रा नुकसान भी कर सकती है.

विटामिन डी

  • एक अध्ययन में जानने को मिला है कि रूमेटॉइड अर्थेराइटिस वाले रोगियों में विटामिन डी की कमी होती है.
  • साथ ही विटामिन डी की कमी वाले मरीज़ों में ज्यादा रोग होने की संभावना और खराब जीवन की गुणवत्ता हो सकती है.
  • विटामिन डी के लेवल सामान्य रहने से इंफ्लामेशन से बचाव के साथ गठिया के फैलने को रोका जा सकता है.
  • किडनी रोग, ब्लड में हाई कैल्शियम लेवल, आर्टिरिज़ का सख्त होना, लिमफोमा, टीबी, हाइपरपैराथायरॉइडिज़्म, हिस्टोप्लासमोसिस आदि कंडीशन होने पर विटामिन डी नहीं लिया जाना चाहिए.
  • कुछ दवाओं जैसे एंटीसिड, डायरूटिक्स, ब्लड क्लोटिंग को धीमा करने वाले आदि के साथ विटामिन सी को सेवन न करें. 

कैल्शियम

  • इसे ऑस्टियोअर्थेराइटिस से बचाव में मदद करने के लिए जाना जाता है.
  • कैल्शियम को हेल्दी जोड़ो और हड्डियों के लिए उपयुक्त माना जाता है.
  • रूमेटॉइड अर्थेराइटिस और ऑस्टियोअर्थेराइटिस वाले रोगियों के लिए यह जरूरी है.
  • रिसर्च में देखने को मिला है कि विटामिन डी और कैल्शियम का सप्लीमेंट लेने से फ्रैक्चर का रिस्क कम हो जाता है.
  • साथ ही इससे संपूर्ण हेल्थ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
  • ब्लड में फॉस्फेट के हाई या लो लेवल होने, पैराथायरॉइड ग्लैंड डिसऑर्डर, खराब किडनी फंक्शन, सारकॉइडोसिस, हाइपरथायरॉइडिज़्म आदि होने पर कैल्शियम का सेवन नहीं किया जाना चाहिए.
  • इसके अलावा कुछ दवाओं जैसे एंटीबायोटिक्स, डायरूटिक्स आदि के पहले से जारी सेवन करने पर कैल्शियम का सेवन न करें.

विटामिन ई

  • दर्द और इंफ्लामेशन को कम करने गठिया में इलाज में विटामिन ई एक एंटीऑक्सिडेंट के रूप में काम करता है.
  • रोजाना इसकी 15 एमजी की डोज ली जानी चाहिए.
  • अगर आपको एंज़ियोप्लास्टी, हार्ट अटैक का इतिहास, विटामिन के का कम स्तर, प्रोस्टेट कैंसर, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, स्ट्रोक का इतिहास, सिर और गले का कैंसर आदि होने पर विटामिन ई का सेवन न करें.
  • इसके अलावा कीमोथेरेपी, कैंसर, कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं, ब्लड क्लोटिंग का धीमा करने वाली दवा के मामले में विटामिन ई का सेवन न करें.

विटामिन सी

  • विटामिन सी को इंफ्लामेशन से बचाव करने और हेल्दी जोड़ो के लिए प्रभावी माना जाता है.
  • साथ ही यह जोड़ने वाले टिश्यू को बनाए रखने और विकसित करने में मदद करता है.
  • एक अध्ययन में देखने को मिला है कि विटामिन सी के सेवन से ऑस्टियोअर्थेराइटिस वाले रोगियों को बचाव में मदद मिलती है.
  • रोजाना पुरूषों को विटामिन सी की 90 एमजी और महिलाओं को 75 एमजी डोज की जरूरत होती है.
  • स्मोकिंग करने वाले लोगों की इसकी डोज की अधिक जरूरत पड़ती है.
  • इसके अलावा हाल ही में एंजियोप्लास्टी, कैंसर, किडनी स्टोन, ब्लड आयरन डिसऑर्डर, सिकेल सेल रोग आदि होने पर विटामिन सी का सेवन नहीं करना चाहिए.
  • साथ ही कुछ कैंसर दवाओं, ब्लड क्लोटिंग को स्लो करने, कोलेस्ट्रोल कम करने वाली, एचआईवी, एड्स, एंटासिड दवाओं आदि का सेवन करने पर विटामिन सी का सेवन नहीं करना चाहिए.

अन्य नैचुरल ट्रीटमेंट के विकल्प

  • कुछ प्राकृतिक उपाय तेज़ी से दर्द में राहत देने और गठिया संबंधी असहजता को कम करने में मदद करते है.

अरोमाथेरेपी

  • इसमें एसेंशियल ऑयल का उपयोग किया जाता है जिसकी खूशबू से शारीरिक और मानसिक रूप से साकारात्मकता पाने में मदद मिलती है.
  • एसेंशियल ऑयल का उपयोग नहाने, किसी दूसरे ऑयल के साथ मिलाकर मसाज करने या खूशबू लेने से लाभ मिलता है.
  • इसकी खूशबू से दर्द और घबराहट को कम करने, रिलैक्स करने, एनर्जी लेवल बूस्ट करने में मदद मिलती है.
  • एसेंशियल ऑयल को अदरक, कपूर, लौंग, लैवेंडर आदि के साथ उपयोग कर गठिया के दर्द में राहत पाई जा सकती है.
  • इन ऑयल का उपयोग करने से पहले स्किन पर छोटे से हिस्से पर लगाकर टेस्ट कर लें जिससे एलर्जिक रिएक्शन आदि होने का पता चल जाए.

गर्म और ठंडी सिकाई

  • गर्म सिकाई करने से सर्कुलेशन और लचीलापन बेहतर होने के अलावा गतिविधियों को आसानी से किया जा सकता है.
  • गर्म सिकाई के लिए गर्म पानी से नहाना, हीटिंग पैड, सौना, हीट बेल्ट आदि.
  • जबकि हाई ब्लड प्रेशर या हार्ट रोग होने पर गर्म टब या सौना का उपयोग नहीं करना चाहिए.
  • ठंडी सिकाई से सर्कुलेशन धीमा होना, सूजन कम होना और नसों को सुन्न कर दर्द हो जाता है.
  • इसके लिए बर्फ को किसी कपड़े या प्लास्टिक बैग में लपेटकर प्रभावित एरिया पर लगाया जा सकता है.
  • ध्यान रहें कि दोनों तरह की सिकाई ज्यादा करने से स्किन को नुकसान हो सकता है.

मसाज

  • इससे जोड़ों के फंक्शन को बेहतर करने, लंबे समय से चले आ रहे तनाव और दर्द को कम करने, घबराहट को घटाने, नींद बेहतर करने में मदद मिलती है.
  • डॉक्टर से बात कर जानें कि मसाज आपके लिए सुरक्षित है या नहीं.
  • फ्लेयर अप, जोड़ों के संवेदनशील होने, पैरो में ब्लड क्लॉट की हिस्ट्री होने पर मसाज न करें.

अंत में

किसी भी नए ट्रीटमेंट या उपचार को शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लें. जबकि लक्षणों के खराब होने या नए लक्षण दिखने पर ऐसे ट्रीटमेंट को तुरंत बंद कर दें.

References –

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