इस लेख में आप जानेंगे क्लीनिकल ट्रायल क्या होता है, इसके अलग-अलग फेज़ के बारे में –

क्लीनिकल ट्रायल क्या होता है? – what are clinical trials?

  • हेल्थ कंडीशन से बचाव, निदान और इलाज के नए तरीकों को जानने के लिए क्लीनिकल ट्रायल एक बेहतर तरीका है. (जानें – वजन घटाने वाले हेल्दी स्नैक्स के बारे में)
  • इसका लक्ष्य किसी भी तरीके की सुरक्षा और प्रभावशिलता को जानना होता है.
  • क्लीनिकल ट्रायल के दौरान कई सारे मापदंडो का ध्यान रखा जाता है.
  • इन मापदंडो में दवाएं, मडिकल डिवाइस, दवाओं को नए तरीके से उपयोग आदि शामिल होता है.
  • किसी भी क्लीनिकल ट्रायल को करने से पहले अध्ययनकर्ता द्वारा मानव सेल स्ट्रक्चर या जानवरों के मॉडल पर प्रीक्लीनिकल रिसर्च करनी होती है.
  • उदाहरण के लिए – किसी नई दवा के टॉक्सिक होने की जांच के लिए मानव सेल्स के सैंपल पर लैब में टेस्ट किया जाता है.
  • प्रीक्लीनिकल रिसर्च में लाभ दिखने पर मानवों पर क्लीनिकल ट्रायल किए जाते है.
  • क्लीनिकल ट्रायल के कई सारे फेज़ होते है जिसके दौरान अलग अलग सवाल पूछे जाते है.
  • किसी फेज़ के परिणाम के बाद ही अगले चरण में जाया जाता है.

क्लीनिकल ट्रायल के कितने फेज़ होते है?

फेज़ 0

  • यह ट्रायल काफी कम लोगों पर किया जाता है, अधिकांश 15 से कम लोग.
  • शुरूआती फेज़ के दौरान मानवों को कम डोज़ देती जाती है जो बाद के फेज़ में डोज़ बढ़ जाती है.
  • दवाओं के अलग रूप से कार्य करने पर रिसर्चरों द्वारा ट्रायल को रोककर अधिक प्रीक्लीनिकल रिसर्च की जाती है.

फेज़ 1

  • इसके दौरान शौधकर्तओं द्वारा 20 से 80 स्वस्थ लोगों कई महीनों तक दवाओं के प्रभावों को देखा जाता है.
  • इस फेज़ (चरण) का मक़सद यह पता लगाना होता है कि बिना साइड इफेक्ट के कितनी हाई डोज़ तक इंसानों को दी जा सकती है. (जानें – चाय के साइड इफेक्ट के बारे में)
  • इस दौरान रिसर्चर द्वारा दवाओं के कारण सभी सहभागियों के शरीर में होने वाले बदलावों की बहुत ही नज़दीक से निगरानी रखी जाती है.
  • हालांकि, प्रीक्लीनिकल रिसर्च में डोज़ की आम जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है.
  • लेकिन मानव शरीर पर दवा का प्रभाव अप्रत्याशित हो सकता है.
  • सुरक्षा और खुराक की सही मात्रा को जानने के लिए, शौधकर्ताओं द्वारा यह भी देखा जाता है कि ड्रग को मौखिक, इंजेक्शन या टॉपिकल के रूप में से किस में सबसे अधिक लाभ है.
  • एक आंकड़े की माने तो करीब 70 फीसदी दवाओं को अगले फेज़ में भेज दिया जाता है.

फेज़ 2

  • इस फेज़ के दौरान कई सारे प्रत्याशी होते है जो रोगी होती है, जिनको रोग विशेष के इलाज के लिए बनी दवा दी जाती है.
  • इससे पहले वाले फेज़ में सुरक्षित माने जाने वाली दवा की डोज़ इन मरीज़ो को दी जाती है.
  • दवाओं के प्रभाव और साइड इफेक्ट जानने के लिए रोगियों को कई महीनों या वर्षों तक निगरानी में रखा जाता है. (जानें – साबुत अनाज वाले फ़ूड्स के बारे में)
  • इससे पहले वाले फेज़ों के मुकाबले इस चरण में ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ती है, हालांकि इसके बावजूद भी यह दवा की पूर्ण सुरक्षा को नहीं बता पाता है.
  • फेज़ 2 के दौरान मिलने वाले डाटा के आधार पर ही रिसर्चरों को अगले चरण में जाने में मदद मिलती है.
  • एक आंकड़े के अनुसार, 33 फीसदी दवाएं तीसरे चरण तक जाती है.

फेज़ 3

  • इस फेज़ के दौरान करीब तीन हज़ार लोग शामिल होते है.
  • इन मरीज़ों को रोग विशेष के लिए बनी दवा दी जाती है.
  • तीसरे फेज़ के ट्रायल कई वर्षों तक चलते है.
  • इस तीसरे चरण के दौरान पूरानी दवाओं के साथ नई दवा का उपयोग कर, दोनों में अंतर पता लगाया जाता है.
  • ट्रायल में आगे बढ़ने के लिए शौधकर्ताओं द्वारा पहले से जारी ट्रीटमेंट के साथ ही नई दवा की सुरक्षा और प्रभावशिलता को दिखाना होता है.
  • इसके लिए शौधकर्ताओं द्वारा क्रमरहित प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है.
  • इसके दौरान कुछ प्रत्याशी को बिना किसी क्रम के चुनकर उनको नई दवाएं दी जाती है जबकि अन्य को पूरानी दवाएं ही देते रहते है.
  • फेज़ 3 के दौरान शौधकर्ताओं और प्रत्याशियों को पता नहीं होता है कि वह कौन सी दवाएं ले रहे है.
  • इससे परिणाम के दौरान किसी भी पक्षपात की गुंजाइश खत्म हो जाती है.
  • आमतौर पर दवाओं को अप्रुव करने वाली संस्थाओं द्वारा तीसरे फेज़ के बाद ही किसी नई दवा के इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है. (जानें – खून को साफ़ करने वाले फ़ूड्स के बारे में)
  • तीसरे फेज़ में ज्यादा प्रत्याशियों, लंबा समय और लंबे समय के साइड इफेक्ट आदि दिख जाते है.
  • जिसके बाद शौधकर्ताओं द्वारा इसे सुरक्षित और प्रभावी सुनिश्चित करने पर इसकी अनुमति दे दी जाती है.
  • इसके बाद 25 से 30 फीसदी दवाओं को अगले चरण में भेजा जाता है.

फेज़ 4

  • दवा को अनुमति मिलने के बाद इस क्लीनिकल ट्रायल को किया जाता है.
  • इस फेज़ में कई हज़ार मरीज शामिल कई वर्षों के लिए शामिल होते है.
  • इसमें दवा की लंबे समय में प्रभावशिलता, सुरक्षा और अन्य लाभों की जानकारी जुटाई जाती है.

अंत में

किसी भी क्लीनिकल रिसर्च में ट्रायल और उनके अलग अलग चरण काफी अहम होते है. इनसे किसी भी नए ड्रग की सुरक्षा, प्रभावशिलता, इलाज को जानने में मदद मिलने के साथ ही यह पता लगता है कि इस दवा का उपयोग आम जनता के लिए किया जाए या नहीं. (जानें – एलर्जी के घरेलू उपायों के बारे में)

References –

 

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